सींग और नाखून लोहे के बक्तर कंधों पर। सीने में सूराख हड्डी का। आँखों में : घास काई की नमी।
एक मुर्दा हाथ पाँव पर टिका उलटी कलम थामे।
तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है। जड़ों का भी कड़ा जाल हो चुका पत्थर।
(1942)
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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